योग अनुसंधान : हृदयाघात से बचाव में कारगर है योग

योग अनुसंधान : हृदयाघात से बचाव में कारगर है योग

हृदयाघात से बचाव और हृदय रोग के मरीजों पर योग की विभिन्न विधियां बेहद प्रभावी सबित हो रही हैं। आस्ट्रेलिया सहित दुनिया के कई देशों में इसे विज्ञान की कसौटी पर भी कसा जा चुका है। अब अपने देश के विज्ञान एवं चिकित्सा संस्थानों में भी हृदयाघात से बचाव में योग के प्रभावों को परखने के लिए कई स्तरों पर काम किया जा रहा है। इनमें से कई अनुसंधानों के नतीजे भी आ चुके हैं, जिनसे हृदयाघात से बचाव में योग की महत्ता स्थापित हुईं हैं।

ऐसे ही शोधों से संबंधित एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर हाल ही काम पूरा हुआ है। सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योगा एंड नेचुरोपैथी (CCRYN) की पहल पर दिल्ली के वर्द्धमान महावीर मेडिकल कालेज एवं सफदरजंग अस्पताल के मनोविज्ञान विभाग में कॉर्डियोवास्कुलर ऑटोनोमिक फंक्शन पर योग के प्रभाव पर अनुसंधान हुआ है। इस अनुसंधान का उद्देश्य यह पता लगाना था कि किस योगाभ्यास से हृदय को ऐसी स्थिति में लाया जाए ताकि धमनियों में रक्त संचार सुगमता से होता रहे। उम्मीद है कि इस अनुसंधान से संबंधित रिपोर्ट जल्दी ही जारी होगी।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) ने देशभर के 24 स्थानों पर किए गए अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि योग हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद करता है। लंबे समय तक किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस ट्रायल के दौरान हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योग आधारित पुनर्वास (योगा-केयर) की तुलना देखभाल की उन्नत मानक प्रक्रियाओं से की गई है। लगातार 48 महीनों तक चले इस अध्ययन में अस्पताल में दाखिल अथवा डिस्चार्ज हो चुके चार हजार हृदय रोगियों को शामिल किया गया था। ट्रायल के दौरान तीन महीने तक अस्पतालों और मरीजों के घर पर योग प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए थे। दस या उससे अधिक प्रशिक्षण सत्रों में उपस्थित रहने वाले मरीजों के स्वास्थ्य में अन्य मरीजों की अपेक्षा अधिक सुधार देखा गया।

पीएचएफआई की इस परियोजना को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और मेडिकल रिसर्च काउंसिल – यूके ने प्रायोजित किया था। अध्ययन रिपोर्ट अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के शिकागो में हुई बैठक में जारी की गई थी। अध्ययन के लिए “योगा केयर” नाम से मरीजों के अनुकूल एक पाठ्यक्रम तैयार किया गया था। उसमें ध्यान, श्वास अभ्यास, हृदय अनुकूल चुनिंदा योगासन और जीवन शैली से संबंधित सलाह शामिल किया गया। पुणे स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग में भी कॉर्डियोवास्कुलर ऑटोनोमिक फंक्शन पर प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया गया। नतीजा आशाजनक रहा। पाया गया कि दो महीनों तक नियमित रूप से प्राणायाम की विधियों को अपनाने वाले मरीजों में सुधार सामान्य मरीजों की तुलना में कई गुणा ज्यादा था।

यौन क्रियाओं का हृदय से सीधा संबंध स्थापित सत्य है। इसके लाभ-हानि पर चर्चा होती रहती है। पर हानि से बचाव का कोई यौगिक उपचार है? इस सवाल पर चर्चा कम ही हुई। जबकि विभिन्न स्तरों पर हुए शोधों से साबित हो चुका है कि हृदय को खास परिस्थियों की वजह से होने वाली हानि से बचाव में योग कारगर है। उस योग का नाम है – सिद्धासन। गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम द्वारा शोधित “सिद्धासन” को विज्ञान की कसौटी पर बार-बार कसा गया और हर बार खरा साबित हुआ। नतीजतन, सिद्धासन हृदय रोग से बचाव के लिए अनुशंसित योगाभ्यासों में सबसे महत्वपूर्ण बन गया है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने पाया है कि कुछ सावधानियों के साथ यह योगाभ्यास पुरूषों और महिलाओं को समान रूप से लाभ पहुंचाता है।

पहली बार हृदय का सफल प्रत्यारोपण करने वाले विश्व विख्यात हृदय शल्य चिकित्सक डॉ क्रिश्चियन बर्नार्ड ने अपने शोध में पाया था कि हृदयाघात में यौन अंगों की भी बड़ी भूमिका होती है और सिद्धासन से यौन अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए हृदय रोग से बचने के लिए इसका अभ्यास सबको नियमित रूप से करना चाहिए। डॉ बर्नार्ड ने 3 दिसंबर 1967 को दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन के एक अस्पताल में हृदय प्रत्यारोपण किया था, जो सफल रहा था। हृदय रोगियों पर योग के प्रभावों के संबंध में संभवत: यह पहला वैज्ञानिक अनुसंधान था। डॉ बर्नार्ड भारत के परंपरागत योग से बेहद प्रभावित थे। पर जब सिद्धासन पर किए गए एक अनुसंधान से भी पुष्टि हुई कि यह मानव के भावनात्मक उथल-पुथल के कारण होने वाले हृदय रोग से बचाव में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से आह्वान किया कि सभी लोग इस योगाभ्यास को विशेषज्ञों की देखरेख में समय-समय पर करें।

इस अनुसंधान के कई वर्ष बाद आस्ट्रेलिया में जन्में और सिडनी विश्व विद्यालय से चिकित्सा विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ ली ब्रेडली, जो बाद में डॉ स्वामी कर्मानंद के नाम से मशहूर हुए, ने भारत भूमि पर परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के सानिध्य में अंतर्राष्ट्रीय योग मित्र मंडल अनुसंधान केंद्र के साथ जुड़कर डॉ बर्नार्ड के अनुसंधान को बड़ा फलक प्रदान किया। पर उनके अनुसंधान से भी डॉ बर्नार्ड के अनुसंधान के नतीजों की पुष्टि हुई। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि मन की गहराइयों से उठने वाली प्रवृत्तियों और मनोभावनात्मक उत्तेजनाओं का संबंध हृदयाघात से है और इन मनोभावनाओं पर नियंत्रण पाने में सिद्धासन कारगर है। अब डॉ स्वामी कर्मानंद का जीवन आस्ट्रेलिया के आदिवासियों को समर्पित है। वे उनके बीच बेहद लोकप्रिय हैं।

आम धारणा रही है कि हृदयाघात पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में बेहद कम होता है। वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर हृदयाघात का खतरा रहता है। डॉ कर्मानंद ने योग के चिकित्सकीय प्रभावों पर अपने अनुसंधानों के बाद अपनी एक चर्चित पुस्तक “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कॉमन डिजीज” में लिखा कि पुरूषों और महिलाओं की यौन ग्रंथियों में निर्मित होने वाले क्रमश: एण्ड्रोजन और एस्ट्रोजन हॉरमोन का बनना और उसका नियंत्रण पिट्यूटरी ग्रंथी से होता है, जो स्वयं मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस नामक हिस्से के नियंत्रण में रहती है। मस्तिष्क का यह हिस्सा भावनाओं और आवेगों के प्रति अतिसंवेदनशील रहता है।

जब कुछ प्रकार के संवेग या भावनाएं अनियंत्रित या त्वरित होते हैं तो इन यौन हॉरमोनों की अधिक मात्रा रक्त प्रवाह में स्रावित हो जाती है। ये स्रावण प्रजनन अंगों को उत्तेजित करते हैं, जो भावनात्मक अभिव्यक्ति एवं दबाव मुक्ति का माध्यम बन जाते हैं। इस शोध से स्थापित हुआ कि पौरूष एण्ड्रोजन ही पुरूषों की आक्रमणशील या उद्यशील विशिष्टता के साथ-साथ हृदयघाती व्यक्तित्व प्रदान करता है। इसलिए स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में हृदय रोग आमतौर पर अधिक देखा जाता है। पर रजोनिवृत्ति के बाद सब कुछ बदल जाता है। शोध से पता चला कि रजोनिवृत्ति से पहले महिलाओं के हृदय की प्रकोष्ठ भित्तियों एवं बडी धमनियों की भित्तियों में विशेष तरह के एण्ड्रोजन रिसेप्टर्स की उपस्थिति होती है, जो एण्ड्रोजन के दुष्प्रभावों से हृदय की रक्षा करता है। मगर यह अंत:स्रावी प्रक्रिया जब रजोनिवृत्ति के बाद बदलती है तो एस्ट्रोजन कम होता है। इससे हृदयाघात की संभावना लगभग पुरूषों के बराबर हो जाती है।

योग विज्ञानियों का कहना है कि भावनाओं और यौन प्रक्रियाओं को योगाभ्यास के जरिए संतुलित करने से इन स्रावों की मात्रा में संतुलन आ जाता है। इन योगाभ्यासों में सिद्धासन प्रमुख है। हालांकि योगाचार्यों के निर्देशन में ही और सीमित अवधि तक यह योगाभ्यास करने की सलाह दी जाती है। साइटिका, स्लिप डिस्क, घुटने में दर्द, जोड़ो का दर्द और कमर दर्द, बवासीर आदि से पीड़ित लोगों को विशेष तौर से हिदायत दी जाती है कि वे इसका अभ्यास न करें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बीते दो दशकों से योग विज्ञान पर लेखन कर रहे हैं।)

 

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